चंडूखाना
01 सितंबर 2011
"Transfer of Power Agreement" को जानें और दूसरों को बताएँ
"Transfer of Power Agreement" को जानें और दूसरों को बताएँ
सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि । ये इतनी खतरनाक संधि है कि अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये । 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ उससे आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में। Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाती है, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है । और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है । यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे। लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया, कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये। अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे । ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था । और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया, और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए । ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पूरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया , और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून, और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे । वो नोआखाली में थे, और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप, गाँधी जी ने मना कर दिया था ,क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है । और गाँधी जी ने स्पष्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है। और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी । उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हूँ कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया । ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है । मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है । और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे । माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था । क्यों ? इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में । अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों का जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है ...............
इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं । वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations । अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है । ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति । किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति । आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो । Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में। इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं, लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है । ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं । एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डायना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |
भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा । हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है । संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया । ये इसी संधि के शर्तों में से एक है । अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है । कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है ।
50 वर्षों तक यानि 1997 तक भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया गया । 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया । क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था , इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये , आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर।
इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था । यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है । समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई । मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया । सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था । और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे , एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे । एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था । इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे ।
इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक, और अभी ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |
आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है । ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था । इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था । इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी । 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा । इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी । भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते । लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है ।
इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा । इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था । Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए ।
इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे । शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे । आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं । लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला । अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था । ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है ।
हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है । हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है । मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है । जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा । नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है । हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसे शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे । आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology । जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है । और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है ।
इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिश की गयी । आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए । दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए । आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया । ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था । मतलब कहने का ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है ।
इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा । हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे । और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था ""I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation" । गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे ।
इस संधि में एक और खास बात है । इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा । कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा ।
भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी । और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |
अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है । आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है । और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं ।
आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था । जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके । इतनी गुलामी में रहा है ये देश । ये भी इसी संधि का हिस्सा है ।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज की जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड की शुरुआत की । वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है , और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है । जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था । आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में ।
अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था । मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था । अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला । ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की । अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं । अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है ।
हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है । ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है । ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है लेकिन इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है । और इसी वेस्टमिन्स्टर सिस्टम को महात्मा गाँधी बाँझ और वेश्या कहते थे (मतलब आप समझ गए होंगे) |
ऐसी हजारों शर्तें हैं । मैंने अभी जितना जरूरी समझा उतना लिखा है | मतलब यही है क़ि इस देश में जो कुछ भी अभी चल रहा है वो सब अंग्रेजों का है हमारा कुछ नहीं है । अब आप के मन में ये सवाल हो रहा होगा क़ि पहले के राजाओं को तो अंग्रेजी नहीं आती थी तो वो खतरनाक संधियों (साजिश) के जाल में फँस कर अपना राज्य गवां बैठे लेकिन आज़ादी के समय वाले नेताओं को तो अच्छी अंग्रेजी आती थी फिर वो कैसे इन संधियों के जाल में फँस गए । इसका कारण थोडा भिन्न है क्योंकि आज़ादी के समय वाले नेता अंग्रेजों को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने जानबूझ कर ये संधि की थी । वो मानते थे क़ि अंग्रेजों से बढिया कोई नहीं है इस दुनिया में । भारत की आज़ादी के समय के नेताओं के भाषण आप पढेंगे तो आप पाएंगे क़ि वो केवल देखने में ही भारतीय थे लेकिन मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे ।वे कहते थे क़ि सारा आदर्श है तो अंग्रेजों में, आदर्श शिक्षा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श अर्थव्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श चिकित्सा व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कृषि व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श न्याय व्यवस्था है तो अंग्रेजों की, आदर्श कानून व्यवस्था है तो अंग्रेजों की । हमारे आज़ादी के समय के नेताओं को अंग्रेजों से बड़ा आदर्श कोई दिखता नहीं था और वे ताल ठोक ठोक कर कहते थे क़ि हमें भारत अंग्रेजों जैसा बनाना है । अंग्रेज हमें जिस रस्ते पर चलाएंगे उसी रास्ते पर हम चलेंगे । इसीलिए वे ऐसी मूर्खतापूर्ण संधियों में फंसे । अगर आप अभी तक उन्हें देशभक्त मान रहे थे तो ये भ्रम दिल से निकाल दीजिये और आप अगर समझ रहे हैं क़ि वो ABC पार्टी के नेता ख़राब थे या हैं तो XYZ पार्टी के नेता भी दूध के धुले नहीं हैं । आप किसी को भी अच्छा मत समझिएगा क्योंक़ि आज़ादी के बाद के इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है । खैर ...............
लेखक : स्वर्गीय भाई राजीव दिक्षित
19 अगस्त 2011
हाले दिल
दुख से भरी कहानी मेरी, कैसे इसको तुम्हें सुनाऊँ
मधुशाला में पीते-पीते,पूरी उम्र गुजर जाती है
हर गम का कितना पैमाना, कैसे तुम्हें बताऊँ
हरदम हरपल तेरी बातें, हर कोई बेगाना लगता है
हर दिल से जैसे मेरा, हर रिश्ता पुराना लगता है
सबके होठों पर तेरी बातें, हर कोई दीवाना लगता है
हर रिश्ते से तेरा रिश्ता, जैसे अपना-सा लगता है
हर कोई ढूँढे मयखानों को, हर कोई दो पैमाने पीता है
मैं जो पी लूं तेरे पैमानों से, नशा सौ पैमानों सा लगता है
दो चार पैमानों को पीकर के, हर कोई बहकता रहता है
अपना तो हर आलम जैसे, फूलों जैसा हँसता है ……
31 मई 2011
अंडा भूर्जी
29 मई 2011
नवेगाँव डेम
12 मई 2011
बाल श्रम का अधिनियम इनके उपर क्यों नहीं लगता
09 मई 2011
13 नवंबर 2010
अनोखी दुनिया
आज ऐसी ही ट्रक के पीछे एक बात लिखी हुई थी
06 नवंबर 2010
यात्रा विवरण
12 अक्टूबर 2009
10 अक्टूबर 2009
आजादी
और हम आज भी आजाद नहीं हैं
बंधे हुए हैं रुढीवादियों की जंजीरों से
इस कदर बढ़ते हुए भ्रस्टाचारों से
बढती हुई गरीबी से लाचार हैं हम
बढती हुई महंगाई से मजबूर हैं हम
कर रहें हैं फाकें इस देश में लोग
हमको ही नोच रहें है इस देश में लोग
क्या है कि कुछ लोग बरबाद नही हैं
और हम आज भी आजाद नहीं हैं
निदा फाज़ली
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
सब कुछ तो है क्या ढूँढ्ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नही जाता
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यो नही जाता
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नही जाता
वो ख्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है
वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यों नही जाता
08 अक्टूबर 2009
कमला
निदा फाज़ली
तुम को भूल न पाएंगे हम,ऐसा लगता है
ऐसा भी एक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना सा लगता है
तुम क्या बिछडे भूल गए रिश्तों की शराफत हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है
अब भी यूँ मिलते है हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है
और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता फिरता शहर अचानक तनहा लगता है
निदा फाज़ली
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो जेहन में नाराज़गी रहे
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमे खिले है फूल वो डाली हरी रहे
हर वक्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे
यक्ष प्रश्न
खैर छोड़ो वैसे भी हमें आज बहुत दिनों के बाद टाइम मिला है ब्लॉग लिखने का, इसलिए आप लोगो का टाइम खोटी नही करूँगा
आज का यक्ष प्रश्न है कि-
लोग पैसे के पीछे क्यो भाग रहे है ?
29 अगस्त 2009
निदा फाज़ली
वो भी मेरी ही तरह शहर में तनहा होगा
इतना सच बोल कि होटों का तबस्सुम न बुझे
रोशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिसको पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा
एक महफ़िल में कई महफिलें होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड़ के देखा होगा
28 अगस्त 2009
यक्ष प्रश्न
आज का प्रश्न-------
भगवान् ने पेट को बीच में क्यों लगाया ?उपर नीचे भी कर सकता था
26 अगस्त 2009
मुल्ला नसरुद्दीन
25 अगस्त 2009
मुल्ला नसरुद्दीन
मुल्ला ने कहा २-३ दिनों तक ठहरें
मित्र ने फिर पूछा २-३ दिन में कैसे बता दोगे क्या खोज बीन में लगे हो
मुल्ला ने कहा नहीं दो तीन कम्पनियों से बात चल रही है जो कम्पनी ज्यादा देगी वही राज है एक बिस्कुट कम्पनी है ,एक बोर्नविटा वाले है और एक विटामिन बनाने वाली कम्पनी है
निदा फाज़ली
हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए
घर से बाहर की फ़ज़ा हँसने हँसाने के लिए
यूँ लुटाते न फिरो मोतियों वाले मौसम
ये नगीने तो हैं रातों को सजाने के लिए
अब जहाँ भी है वहीँ तक लिखो रुदाद-ए-सफ़र
हम तो निकले थे कही और ही जाने के लिए
मेज़ पर ताश के पत्तों सी सजी है दुनिया
कोई खोने के लिए है कोई पाने लिए
तुमसे छुट कर भी तुम्हे भुलाना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए
* निदा फाज़ली *
रुदाद-ए-सफ़र :यात्रा वृत्तान्त
मुल्ला नसरुद्दीन
मुल्ला नसरुद्दीन
नसरुद्दीन बोले क्यों नहीं जरुर जरुर दुसरे दिन मुल्ला युवती का पता ले कर माकन की तलाश शुरू कर दी लेकिन मकान कुछ ऐसा की मिले ही न आखिर एक वृद्ध व्यक्ति को रोककर मुल्ला ने पूछा क्या आप बता सकते है की मिस सलमा कहा रहती है उसने उपर से नीचे तक मुल्ला को देखा और पूछा क्या मैं जान सकता हूँ की आप कौन हैं
नसरुद्दीन बोले जी मैं उनका भाई हूँ
वृद्ध ने कहा आइए आइए बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर ,मैं उसका पिता हूँ |
मुल्ला नसरुद्दीन
नसरुद्दीन ने कहा माई तू गलत समझ रही है नसरुद्दीन उसका नाम नहीं मेरा नाम है मैं तो अपने को समझा रहा हूँ कि नसरुद्दीन शांत रहो नहीं तो दिल तो कर रहा है कि इस दुष्ट का टेंटुआ दबा दूँ
24 अगस्त 2009
सफ़र में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफाज़तों की रवायत बदल सको तो चलो
यही है जिंदगी, कुछ ख्वाब,चन्द उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो
* निदा फाज़ली *
13aug की खबर का असर 24 aug को दिखा
भाजपा के कई तथाकथित नेतागणों ने बहुत इधर उधर फ़ोन घुमाया लेकिन अधिकारीयों ने जैसे कमर कस ली थी चलो आम आदमी को कुछ तो राहत मिली होगी और वो ऐसे व्यापारियों को जम कर कोस रही होगी
चंडूखाने में अभी इतना ही....
मेरी पोस्ट चोरी हो गयी
चंडूखाने से एक खबर आई है की २७-५-०९ को छपी "जिन्दा लाशों की बस्ती" नामक एक पोस्ट चोरी हो गयी है
चंडूखाने के जासूस पूरी सरगर्मी से तलाश कर रहे हैं पुलिस भी कागजी खाना पूर्ति करके जगजाहिर जवाब दे चुकी है खोजने वाले को एक सिंगल समोसा और हाफ चाय इनाम में दी जायेगी, इतने बड़े इनाम की अभी तक किसी ने घोषणा नहीं की थी वैसे ब्लोगर सूत्रों से पता चला है की ये http://www.fundoozone.com/forums/showthread.php?t=23318
में आखरी बार देखी गयी थी, और ज्यादा साक्ष जुटाने के लिए http://copyscape.com की मदद ली जा रही है वैसे अब पोस्ट में ताला लगा दिया गया है लेकिन "अब पछतात होत का जब चिडिया चुग गयी खेत"
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार
या इलाही यह माजरा क्या है
मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दा क्या है
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा-ए- ख़ुदा क्या है
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़मजा-ओ-`इशवा- ओ-अदा क्या है
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरी क्यों है
निगह-ए-चश्म-ए-सुर्मा सा क्या है
सबज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
हाँ भला कर तेरा भला होगा
और दर्वेश की सदा क्या है
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है
21 अगस्त 2009
मेरा मन
पानी की बुँदे भी गोलियों सी लगती है,हर बूंदों से आहत होता है मन
समुन्दर सा अशांत क्यों होता है मन,झील सा गहरा क्यों होता है मन
लहरों के किनारे जब भी आता है,अकेले में बैठ के रोता है मन
18 अगस्त 2009
तन्हाई
हर बात अधूरी सी लगती है
दिल से जुबाँ तक आने में
हर बात अधूरी सी लगती है
रिश्तों में खट्टी मीठी सी तकरार
भूली बातों सी लगती है
माँ की बूढी बाते भी
कई सालो का अनुभव लगती है
हर पल जहाँ हम मस्ती करते
वो बचपन की यादे लगती है
दिल को अंदर तक भेदती वो
बारिश की राते लगती है
जब भी अकेला होता मन तो
कितनी यादें भिगोने लगती है
रातें जागकर काटें भी तो
मेरी तनहाई कचोटने लगती है
09 अगस्त 2009
क्या करें साला सिलेंडर महंगा हो गया
28 मई 2009
इमान
हर दफ्तर में मिल जायेंगे आपको बेईमान
हर तरफ देखने को मिल जायेगा भरपूर भ्रष्टाचार
ताक़ में रखे दिख जायेंगे सहिंता औ आचार
सूप तो सुप अब तो चलनी भी बोलने लगी है
इसलिए आज कल जूता फ़ेंक प्रतियोगिता होने लगी है
27 मई 2009
"जिन्दा लाशों की बस्ती"
जिन्दा लाशों की किसी सुनसान बस्ती में आ गया हूँ
हर कोई बैठा अपने ही कफ़न की तैयारी कर रहा है
आदमी ही आदमी को नोच-नोच कर खा रहा है
सोचा किसी हरे पेड़ की छाया में सुस्ता लेता हूँ
पर यहाँ तो हर दरख्त सूखा नज़र आया है
यहाँ हर रिश्ते नाते झुठे से लगते है
माँ बाप भाई बहन सब बेगाने से लगते है
होली में भी छुट रही पिचकारी से गोली है
रंग गुलाल बहुत ही मंहगे हो गए
भूल गए वो टेसू के फूल छुटा अपना देश
आज खेलते खुनी होली बदल के हम भी भेष
ईद की सेवियों में चीनी जरा सी कम हो गई
पुन्नी की खीर में भी चंदा की चमक खो गई
बैसाखी की धूम भी पंजाब में अब कम हो गई
सोचता हूँ क्या हो गया है मेरे देश को
क्या इसकी भी मानवता कहीँ धूमिल हो गई
गणेश चतुर्थी मानते थे हम लोग मिल कर
आज भगवान को भी राजनीति पसंद आ गई है
दुर्गोत्सव में मित्रों का लगता था जमघट
होती थी साथ मिल के पूजा फिर प्रसाद वितरण
घर घर जाते थे लेकर आरती का थाल हाथ में
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सभी योगदान देते थे
अपने अपने कर्तव्य से कोई भी पीछे न हटते थे
दिवाली की रात में सब मिल कर घुमने निकलते थे
चौपालों में लगती थी बड़ी बड़ी सभाएं
रामलीला का मार्मिक प्रसंग खेला जाता था
रावण को मार हर दिल में राम बसता था
रावण आज राम से ज्यादा भारी हो गया है
दुर्योधन ओर सकुनी को भी मिला लिया है
बस नही बदला है तो सीता का हाल इस युग में
उस समय भी आग से गुजरना पड़ा था उसको
ओर आज भी हर कदम आग में चलना है उसको
आज आंसू आ जाते है देख कर हाल 'राणा'
विधवा की पेंशन के लिए भी किसी को अपने
आंचल से बंधे १०० का नोट निकालते देखता हूँ
यूँ घूमते घूमते इस शहर में आ गया हु
जिन्दा लाशों की किसी सुनसान बस्ती में आ गया हु
25 मई 2009
इंसान
हर तरफ़ बारूद की गंध है,हर तरफ़ दरवाज़ा आज बंद है
हर तरफ़ बिक रहा प्यार है ,हर तरफ़ बिक रहा इंसान है
सितम सह के भी चुप हो जाओ, वरना मच रहा बवाल है
21 मई 2009
आज बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ अब आप कारण पूछेंगे तो पहला कारण तो ये है कि एक तो हमें समय नही मिला और जब समय मिला तो हमें जाना पड़ा लख्ननऊ खैर ये सब तो चलता रहेगा
आज मैं आपको और किसान भाइयो को फसल बीमा के बारे में बताता हूँ हालाँकि ये सब बताने वाले तो बहुत हैं लेकिन कौन बताये के चक्कर में कोई नही आता यही कुर्सी का काम है ये कुर्सी भी आदमी को निकम्मा बना देती है या तो निकम्मों को कुर्सी मिल गई है
तो जानिए फसल बीमा के बारे में :-पहले जान लेते है कि फसल बीमा क्या होता है
१.किसी भी आपदा से होने वाली फसलीय हानि कि स्थिति में किसान के नुकसान की भरपाई के लिए राष्ट्रीय कृषि योजना कि स्थापना की गई .
इस योजना के निम्न उद्देश्य हैं
- प्राकृतिक आपदा, कीट या बीमारी से बरबाद होने वाली अधिसूचित फसलो को बीमा का लाभ और वित्तीय समर्थन देना
- किसानो को खेती के हाई टेक तरीको को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना
ये योजना देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशो में उपलब्ध है जो राज्य या संघ शासित प्रदेश योजना में शामिल होने का विकल्प चुनते है उन्हें योजना में शामिल की जाने वाली फसलो की सूची तैयार करनी होती है
अधिसूचित क्षेत्रो में अधिसूचित फसल उगने वाले सभी किसान ,बटाईदार किरायेदार शामिल है
इसमे वो किसान भी आते है जो विभिन्न वित्तीय संस्थाओ से कर्ज ले कर खेती कर रहे हैं निम्नलिखित खतरों के कारण फसल बीमे की जरुरत पड़ी आग, आंधी ,भूकंप ,बाढ़ ,सुखा ,कीट ,बीमारी लेकिन युद्घ, परमाणु युद्घ ,ग़लत नीयत तथा अन्य नियंत्रण योग्य खतरों से हुए नुक्सान को इससे से बाहर रखा गया
बीमित राशिः के कवरेज की सीमा- बीमित किसान के विकल्प से सकल उत्पाद बीमा राशिः को बढाया जा सकता है ये कीमत १५० प्रतिशत तक जा सकती है शर्त यही है की फसल अधिसूचित हो और किसान वाणिज्यिक दर पर प्रीमियम का भुगतान करने को राजी हो .कर्जदार किसानों के मामले में बीमित राशि फसल के लिए ली गयी अग्रिम राशि के बराबर हो.
प्रीमियम की राशिः -खरीफ की फसलो बाजरा व तिलहन के लिए कुल बीमा धन का ३.५% या वास्तविक जो कम हो ,अनाज या दाल के लिए कुल बीमा धन का २.५% या वास्तविक जो कम हो
रबी की फसल के लिए - गेंहू के लिए बीमा धन का १.५% या वास्तविक जो कम हो अन्य फसल (अनाज व दाल) के लिए बीमित राशिः का २% या वास्तविक जो कम हो
लघु या सीमान्त किसानो को प्रीमियम में ५०% तक का अनुदान दिया जाता है
ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक में क्लिक कीजिये
20 मई 2009
21 अप्रैल 2009
दुःख
जिसमें कोई दुःख नही है वैसे देखा जाए तो दुःख के बिना जीना सम्भव ही नही है अगर समस्या नही होती तो तो हम क्या करते बस ऐसे ही बेजान पुतले की तरह जीते रहते .समस्या हमें जिंदगी से जूझने का अवसर देती है वो बोलती है की मैं तुमपे भारी आप समस्या को बोलते है की मैं तुझ पे भारी, बस इसी तरह जिन्दगी का एक पल गुजर जाता है और एक सुखी पल का एहसास आता है हमारे जीवन में, इस एहसास को हम सीने से लगाये रखते हैं ताउम्र, यही एक चीज़ है जो हमें जीना सिखाती है,जिंदगी के हर मोड़ पर लड़ना सिखाती है आने वाले दुःख को कैसे झेलना है, बताती है. दुःख कि चिंगारी बार बार हमारे जीवन में आग लगाती है और हम फिर से आने वाले सुख के लिए इससे लड़ने के लिए तैयार रहते है ऐसे में मुझे बाजीगर का वो डायलाग याद आ जाता है कि "बार-बार हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है"
इसलिए लड़िये और लड़िये जब तक आप जीत ना जायें
10 अप्रैल 2009
सरकारी अस्पताल
नमस्कार
क्या लिखू दो तीन दिनों से समझ नही आ रहा था लेकिन जब आज जिला अस्पताल गया तो ऐसा लगा कि और कुछ लिख ही नही सकता क्यो कि जब मैंने वहा अपना कदम रखा तो ऐसा लगा कि लोग वहा पर मरीजों कि जान के साथ जिस प्रकार खिलवाड़ कर रहे थे जैसे वो इंसान नही कोई प्रयोग करने कि चीज़ हो, और तो और कमीशन खोरी का ऐसा नंगा नाच कही नही देखा,ये हाल है छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव शहर का,यहाँ के डाक्टर महंगी से महंगी दवाई सिर्फ़ इसलिए नही लिखते कि मरीज़ कि जान बच जाए बल्कि इसलिए लिखते है कि उनका ज्यादा से ज्यादा कमीशन बन सके,उस पर आलम ये कि जिस मरीज़ को जो डाक्टर देख रहा है उसको वही देखेगा दूसरा डाक्टर तो हाथ नही लगा सकता भले ही मरीज़ मर जाए .अरे जनाब उसका तो एक ही कारण हो सकता है दूसरा डाक्टर दवाई लिखेगा तो पहले डाक्टर का कमीशन मार नही खा जाएगा सीधी सी बात है भाई दाल रोटी कहाँ से चलेगी ,खैर मैं तो सर पर पैर रख कर भगा और यही सोचता गया कि जो लोग बेचारे गाँव से इलाज़ कराने आते होंगे वो कैसे करते होंगे?सब कुछ चूस लेने के बाद उनको रिफ़र कर दिया जाता है बड़े अस्पतालों कि और ,और उसका भी कमीशन ले लेते होंगे उन अस्पतालों से.
राम राम फिर कोई अजब चीज़ देखने में आएगी तो आप लोगो को जरुर बताऊंगा.