25 अगस्त 2009

निदा फाज़ली

माननीय,आदरणीय,सम्माननीय,पहलवानी श्री समीर भइया को ये निदा फाज़ली साहब की गजल समर्पित करता हूँ उनकी 20 अगस्त की पोस्ट टैक्सस की यात्रा पे

हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए
घर से बाहर की फ़ज़ा हँसने हँसाने के लिए

यूँ लुटाते न फिरो मोतियों वाले मौसम
ये नगीने तो हैं रातों को सजाने के लिए

अब जहाँ भी है वहीँ तक लिखो रुदाद-ए-सफ़र
हम तो निकले थे कही और ही जाने के लिए

मेज़ पर ताश के पत्तों सी सजी है दुनिया
कोई खोने के लिए है कोई पाने लिए

तुमसे छुट कर भी तुम्हे भुलाना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए

* निदा फाज़ली *
रुदाद-ए-सफ़र :यात्रा वृत्तान्त

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