29 अगस्त 2009

निदा फाज़ली

उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तनहा होगा
इतना सच बोल कि होटों का तबस्सुम न बुझे
रोशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिसको पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा
एक महफ़िल में कई महफिलें होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड़ के देखा होगा

यक्ष प्रश्न

आज का प्रश्न है : गया वक्त गुजर कर क्यों नही आता

28 अगस्त 2009

यक्ष प्रश्न

आदरणीय लोगों को आज ये बताते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है कि चंडूखाने में आज से ऐसे चंडू सवालों की शुरुआत हो रही है कि इसका जवाब तो शायद दुनिया बनाने वाले के पास भी न हो लेकिन हमारे ब्लोगर बंधू इन सवालो का जवाब आसानी से दे सके ?
आज का प्रश्न-------
भगवान् ने पेट को बीच में क्यों लगाया ?उपर नीचे भी कर सकता था

26 अगस्त 2009

मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन अपन बेटे को राजनीती की शिक्षा दे रहा था उसने अपने बेटे से कहा चढ़ जा सीढ़ी पर बेटा चढ़ गया ,जब वो पूरी सीढ़ी चढ़ गया तो मुल्ला बोला अब बेटा कूद जा मैं तुझे संभाल लूँगा बेटा थोड़ा डरा सीढ़ी ऊँची कही बाप चुक गया तो हाथ से छुट गया तो कहीं

25 अगस्त 2009

मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन १०० साल के हो गए तो उनके मित्र ने पूछा यार मुल्ला तुन्हारे १०० साल तक जीने का क्या राज है
मुल्ला ने कहा २-३ दिनों तक ठहरें
मित्र ने फिर पूछा २-३ दिन में कैसे बता दोगे क्या खोज बीन में लगे हो
मुल्ला ने कहा नहीं दो तीन कम्पनियों से बात चल रही है जो कम्पनी ज्यादा देगी वही राज है एक बिस्कुट कम्पनी है ,एक बोर्नविटा वाले है और एक विटामिन बनाने वाली कम्पनी है

निदा फाज़ली

माननीय,आदरणीय,सम्माननीय,पहलवानी श्री समीर भइया को ये निदा फाज़ली साहब की गजल समर्पित करता हूँ उनकी 20 अगस्त की पोस्ट टैक्सस की यात्रा पे

हम हैं कुछ अपने लिए कुछ हैं ज़माने के लिए
घर से बाहर की फ़ज़ा हँसने हँसाने के लिए

यूँ लुटाते न फिरो मोतियों वाले मौसम
ये नगीने तो हैं रातों को सजाने के लिए

अब जहाँ भी है वहीँ तक लिखो रुदाद-ए-सफ़र
हम तो निकले थे कही और ही जाने के लिए

मेज़ पर ताश के पत्तों सी सजी है दुनिया
कोई खोने के लिए है कोई पाने लिए

तुमसे छुट कर भी तुम्हे भुलाना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिए

* निदा फाज़ली *
रुदाद-ए-सफ़र :यात्रा वृत्तान्त

मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन के पडोसी ने पूछा तुम्हारा लान तो बड़ा प्यारा है,मैंने भी दूब के बीज लाकर बोए है अंकुर भी आने शुरू हो गए लेकिन कौन से अंकुर दूब के है और कौन से घास पात के है यह कैसे पहचाने मुल्ला ने कहा बड़ी सीधी तरकीब है दोनों को उखाड़ के फ़ेंक दो फिर जो अपने आप उग आये वो घास पात समझ लेना

मुल्ला नसरुद्दीन

मुल्ला नसरुद्दीन का एक युवती से नया नया प्रेम हुआ युवती ने एक दिन कहा कभी हमारे घर भी आयिए
नसरुद्दीन बोले क्यों नहीं जरुर जरुर दुसरे दिन मुल्ला युवती का पता ले कर माकन की तलाश शुरू कर दी लेकिन मकान कुछ ऐसा की मिले ही न आखिर एक वृद्ध व्यक्ति को रोककर मुल्ला ने पूछा क्या आप बता सकते है की मिस सलमा कहा रहती है उसने उपर से नीचे तक मुल्ला को देखा और पूछा क्या मैं जान सकता हूँ की आप कौन हैं
नसरुद्दीन बोले जी मैं उनका भाई हूँ
वृद्ध ने कहा आइए आइए बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर ,मैं उसका पिता हूँ |

मुल्ला नसरुद्दीन

नसरुद्दीन अपने बेटे को घुमाने ले गया अब बेटा चीख रहा है चिल्ला रहा है रो रहा है,और नसरुद्दीन कह रहा है-नसरुद्दीन शांति रखो, धैर्य रखो एक महिला बहुत देर से सुन रही थी उसने कहा बड़ा प्यारा बेटा है ,और तुम भी बड़े धैर्यवान हो उसने बच्चे के सर पर हाथ रखा और कहा बेटा नसरुद्दीन शांत हो जाओ
नसरुद्दीन ने कहा माई तू गलत समझ रही है नसरुद्दीन उसका नाम नहीं मेरा नाम है मैं तो अपने को समझा रहा हूँ कि नसरुद्दीन शांत रहो नहीं तो दिल तो कर रहा है कि इस दुष्ट का टेंटुआ दबा दूँ

24 अगस्त 2009

सफ़र में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो

सफ़र में धुप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो

हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफाज़तों की रवायत बदल सको तो चलो

यही है जिंदगी, कुछ ख्वाब,चन्द उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आपको खुद ही बदल सको तो चलो
* निदा फाज़ली *

13aug की खबर का असर 24 aug को दिखा


१३ अगस्त को छपी पोस्ट का असर अब दिखने लगा है जिले में अब जगह जगह छापामारी अभियान चलने लगा है २३ तारीख को राजनांदगांव के मुंदडा दाल मिल में कई टिन तेल जब्त किया गया तथा आज २४ तारीख को उठने के साथ ही ये अच्छी खबर सुनने को मिली दुर्ग में १.५ करोड़ की दाल बरामद की गयी, भला हो खाद्दान विभाग का जिसे देर से ही सही लेकिन सही बुद्धि तो आई हालांकि इस केस को दबाने की बहुत कोशिश की गयी
भाजपा के कई तथाकथित नेतागणों ने बहुत इधर उधर फ़ोन घुमाया लेकिन अधिकारीयों ने जैसे कमर कस ली थी चलो आम आदमी को कुछ तो राहत मिली होगी और वो ऐसे व्यापारियों को जम कर कोस रही होगी

चंडूखाने में अभी इतना ही....

मेरी पोस्ट चोरी हो गयी

दोस्तों राम राम
चंडूखाने से एक खबर आई है की २७-५-०९ को छपी "जिन्दा लाशों की बस्ती" नामक एक पोस्ट चोरी हो गयी है
चंडूखाने के जासूस पूरी सरगर्मी से तलाश कर रहे हैं पुलिस भी कागजी खाना पूर्ति करके जगजाहिर जवाब दे चुकी है खोजने वाले को एक सिंगल समोसा और हाफ चाय इनाम में दी जायेगी, इतने बड़े इनाम की अभी तक किसी ने घोषणा नहीं की थी वैसे ब्लोगर सूत्रों से पता चला है की ये http://www.fundoozone.com/forums/showthread.php?t=23318
में आखरी बार देखी गयी थी, और ज्यादा साक्ष जुटाने के लिए http://copyscape.com की मदद ली जा रही है वैसे अब पोस्ट में ताला लगा दिया गया है लेकिन "अब पछतात होत का जब चिडिया चुग गयी खेत"

दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है

ग़ालिब साहब की ये गजल राजेश गुप्ता जी ने दी थी उनको गजल गाने का और महफ़िल में पढने का बड़ा शौक है उनकी कई गजले अख़बार में छपती रहती है जब भी रात को ९ के बाद उनसे मिलता हूँ क्योंकी टाइम ही उसी समय मिलता है एक आध गजल वो जरुर सुनाते है ग़ालिब साहब की शायरी पढने के बाद ऐसा लगता है की उनके बाद शायरी में वो बात नहीं आ पाई खैर आगे और भी है छापता रहूँगा

दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार
या इलाही यह माजरा क्या है

मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दा क्या है

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा-ए- ख़ुदा क्या है

ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़मजा-ओ-`इशवा- ओ-अदा क्या है

शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरी क्यों है
निगह-ए-चश्म-ए-सुर्मा सा क्या है

सबज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

हाँ भला कर तेरा भला होगा
और दर्वेश की सदा क्या है

जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है

मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है

21 अगस्त 2009

मेरा मन

बारिश में क्यों झूमता है मन, इस मौसम में क्यों तड़पता है मन
पानी की बुँदे भी गोलियों सी लगती है,हर बूंदों से आहत होता है मन
समुन्दर सा अशांत क्यों होता है मन,झील सा गहरा क्यों होता है मन
लहरों के किनारे जब भी आता है,अकेले में बैठ के रोता है मन

18 अगस्त 2009

तन्हाई

आँखों से कैसे कह दू कि
हर बात अधूरी सी लगती है
दिल से जुबाँ तक आने में
हर बात अधूरी सी लगती है
रिश्तों में खट्टी मीठी सी तकरार
भूली बातों सी लगती है
माँ की बूढी बाते भी
कई सालो का अनुभव लगती है
हर पल जहाँ हम मस्ती करते
वो बचपन की यादे लगती है
दिल को अंदर तक भेदती वो
बारिश की राते लगती है
जब भी अकेला होता मन तो
कितनी यादें भिगोने लगती है
रातें जागकर काटें भी तो
मेरी तनहाई कचोटने लगती है

09 अगस्त 2009

क्या करें साला सिलेंडर महंगा हो गया

अब तो ऐसा लगने लगा है कि हमारे देश में आने वाली पीढियों को सायकल और बैलगाडियों का मुंह देखना पड़ेगा क्योंकि इतने तेजी से हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में लगे हुए हैं कि आने वाले कुछ सालों में पेट्रोल, सिलेंडर, डीज़ल, का रेट इतना बढ़ जायेगा कि