ग़ालिब साहब की ये गजल राजेश गुप्ता जी ने दी थी उनको गजल गाने का और महफ़िल में पढने का बड़ा शौक है उनकी कई गजले अख़बार में छपती रहती है जब भी रात को ९ के बाद उनसे मिलता हूँ क्योंकी टाइम ही उसी समय मिलता है एक आध गजल वो जरुर सुनाते है ग़ालिब साहब की शायरी पढने के बाद ऐसा लगता है की उनके बाद शायरी में वो बात नहीं आ पाई खैर आगे और भी है छापता रहूँगा
दिल-ए नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वह बेज़ार
या इलाही यह माजरा क्या है
मैं भी मुंह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दा क्या है
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा-ए- ख़ुदा क्या है
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैं
ग़मजा-ओ-`इशवा- ओ-अदा क्या है
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरी क्यों है
निगह-ए-चश्म-ए-सुर्मा सा क्या है
सबज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
हाँ भला कर तेरा भला होगा
और दर्वेश की सदा क्या है
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है
आभार।
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