21 अप्रैल 2009

दुःख

मैं सोचता हुं कि हमारे जीवन में समस्या नही होती तो क्या होता? क्या आप ऐसे जीवन की कल्पना कर सकते हैं
जिसमें कोई दुःख नही है वैसे देखा जाए तो दुःख के बिना जीना सम्भव ही नही है अगर समस्या नही होती तो तो हम क्या करते बस ऐसे ही बेजान पुतले की तरह जीते रहते .समस्या हमें जिंदगी से जूझने का अवसर देती है वो बोलती है की मैं तुमपे भारी आप समस्या को बोलते है की मैं तुझ पे भारी, बस इसी तरह जिन्दगी का एक पल गुजर जाता है और एक सुखी पल का एहसास आता है हमारे जीवन में, इस एहसास को हम सीने से लगाये रखते हैं ताउम्र, यही एक चीज़ है जो हमें जीना सिखाती है,जिंदगी के हर मोड़ पर लड़ना सिखाती है आने वाले दुःख को कैसे झेलना है, बताती है. दुःख कि चिंगारी बार बार हमारे जीवन में आग लगाती है और हम फिर से आने वाले सुख के लिए इससे लड़ने के लिए तैयार रहते है ऐसे में मुझे बाजीगर का वो डायलाग याद आ जाता है कि "बार-बार हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है"
इसलिए लड़िये और लड़िये जब तक आप जीत ना जायें

10 अप्रैल 2009

सरकारी अस्पताल

दोस्तों,
नमस्कार
क्या लिखू दो तीन दिनों से समझ नही आ रहा था लेकिन जब आज जिला अस्पताल गया तो ऐसा लगा कि और कुछ लिख ही नही सकता क्यो कि जब मैंने वहा अपना कदम रखा तो ऐसा लगा कि लोग वहा पर मरीजों कि जान के साथ जिस प्रकार खिलवाड़ कर रहे थे जैसे वो इंसान नही कोई प्रयोग करने कि चीज़ हो, और तो और कमीशन खोरी का ऐसा नंगा नाच कही नही देखा,ये हाल है छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव शहर का,यहाँ के डाक्टर महंगी से महंगी दवाई सिर्फ़ इसलिए नही लिखते कि मरीज़ कि जान बच जाए बल्कि इसलिए लिखते है कि उनका ज्यादा से ज्यादा कमीशन बन सके,उस पर आलम ये कि जिस मरीज़ को जो डाक्टर देख रहा है उसको वही देखेगा दूसरा डाक्टर तो हाथ नही लगा सकता भले ही मरीज़ मर जाए .अरे जनाब उसका तो एक ही कारण हो सकता है दूसरा डाक्टर दवाई लिखेगा तो पहले डाक्टर का कमीशन मार नही खा जाएगा सीधी सी बात है भाई दाल रोटी कहाँ से चलेगी ,खैर मैं तो सर पर पैर रख कर भगा और यही सोचता गया कि जो लोग बेचारे गाँव से इलाज़ कराने आते होंगे वो कैसे करते होंगे?सब कुछ चूस लेने के बाद उनको रिफ़र कर दिया जाता है बड़े अस्पतालों कि और ,और उसका भी कमीशन ले लेते होंगे उन अस्पतालों से.
राम राम फिर कोई अजब चीज़ देखने में आएगी तो आप लोगो को जरुर बताऊंगा.