12 अक्तूबर 2009

ऐसा क्यों हुआ कि
मैं उब गया हर किसी से
इनसे भी उनसे भी,अपनों से,गैरों से
यहाँ तक कि आपने आप से

10 अक्तूबर 2009

आजादी

आज़ाद हुए देश को इतने साल हो गए
और हम आज भी आजाद नहीं हैं
बंधे हुए हैं रुढीवादियों की जंजीरों से
इस कदर बढ़ते हुए भ्रस्टाचारों से
बढती हुई गरीबी से लाचार हैं हम
बढती हुई महंगाई से मजबूर हैं हम
कर रहें हैं फाकें इस देश में लोग
हमको ही नोच रहें है इस देश में लोग
क्या है कि कुछ लोग बरबाद नही हैं
और हम आज भी आजाद नहीं हैं

निदा फाज़ली

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
सब कुछ तो है क्या ढूँढ्ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नही जाता
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यो नही जाता
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नही जाता
वो ख्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है
वो ख्वाब हवाओं में बिखर क्यों नही जाता

08 अक्तूबर 2009

कमला

अब नही सहा जाता ,कमला के बापू ने पेट पकड़े हुए कहा, कई दिनों से ही बापू बीमार था पाँच साल की कमला अपनी नन्ही नन्ही आंखों से सब देख रही थी मगर उसके बस में कुछ नही था .नुक्कड़ का डॉक्टर भी देख गया था अस्पताल जाने के पैसे भी नही थे सब कुछ शराब की भेंट चढ़ चुका था,कमला की माँ ने मंगलसूत्र बेच कर दो दिनों की दवा ला दी थी,आज कुछ बेचने को भी नही था.कर्जदार सोच रहे थे कही चल बसा तो पैसे भी डूब जायेंगे अभी तगादा कर लो वो भी वही डेरा डालकर बैठे हुए थे कमला ने नम आँखों से अपने फटे बस्तेकी और देखा और माँ से कहा, मेरा बस्ता बेच दो पिता की पथरायी आँखे कमला की ओर देख रही थी और बाहर अर्थी की तय्यारी हो रही थी.

निदा फाज़ली

कहीं-कहीं से हर चेहरा तुम जैसा लगता है
तुम को भूल न पाएंगे हम,ऐसा लगता है
ऐसा भी एक रंग है जो करता है बातें भी
जो भी इसको पहन ले वो अपना सा लगता है
तुम क्या बिछडे भूल गए रिश्तों की शराफत हम
जो भी मिलता है कुछ दिन ही अच्छा लगता है
अब भी यूँ मिलते है हमसे फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है
और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही
चलता फिरता शहर अचानक तनहा लगता है

निदा फाज़ली

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो जेहन में नाराज़गी रहे
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमे खिले है फूल वो डाली हरी रहे
हर वक्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे

यक्ष प्रश्न

दोस्तों राम राम और जो नियमित ब्लॉग लिखते है उनको कर बद्ध सलाम वो इसलिए कि पता नही इतना टाइम उनके पास कहाँ से आता है और चलो टाइम को जाने भी दो क्योकि "सब तो निकम्मे ही हैं "इतना दिमाग कहाँ से आता है यार कि रोज लिख लेते है कौन सा घी खाते है या कौन से घुट्टी पीते है हमें समझ नही आया आज तक
खैर छोड़ो वैसे भी हमें आज बहुत दिनों के बाद टाइम मिला है ब्लॉग लिखने का, इसलिए आप लोगो का टाइम खोटी नही करूँगा
आज का यक्ष प्रश्न है कि-
लोग पैसे के पीछे क्यो भाग रहे है ?