यूँ घूमते घूमते इस शहर में आ गया हूँ
जिन्दा लाशों की किसी सुनसान बस्ती में आ गया हूँ
हर कोई बैठा अपने ही कफ़न की तैयारी कर रहा है
आदमी ही आदमी को नोच-नोच कर खा रहा है
सोचा किसी हरे पेड़ की छाया में सुस्ता लेता हूँ
पर यहाँ तो हर दरख्त सूखा नज़र आया है
यहाँ हर रिश्ते नाते झुठे से लगते है
माँ बाप भाई बहन सब बेगाने से लगते है
होली में भी छुट रही पिचकारी से गोली है
रंग गुलाल बहुत ही मंहगे हो गए
भूल गए वो टेसू के फूल छुटा अपना देश
आज खेलते खुनी होली बदल के हम भी भेष
ईद की सेवियों में चीनी जरा सी कम हो गई
पुन्नी की खीर में भी चंदा की चमक खो गई
बैसाखी की धूम भी पंजाब में अब कम हो गई
सोचता हूँ क्या हो गया है मेरे देश को
क्या इसकी भी मानवता कहीँ धूमिल हो गई
गणेश चतुर्थी मानते थे हम लोग मिल कर
आज भगवान को भी राजनीति पसंद आ गई है
दुर्गोत्सव में मित्रों का लगता था जमघट
होती थी साथ मिल के पूजा फिर प्रसाद वितरण
घर घर जाते थे लेकर आरती का थाल हाथ में
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सभी योगदान देते थे
अपने अपने कर्तव्य से कोई भी पीछे न हटते थे
दिवाली की रात में सब मिल कर घुमने निकलते थे
चौपालों में लगती थी बड़ी बड़ी सभाएं
रामलीला का मार्मिक प्रसंग खेला जाता था
रावण को मार हर दिल में राम बसता था
रावण आज राम से ज्यादा भारी हो गया है
दुर्योधन ओर सकुनी को भी मिला लिया है
बस नही बदला है तो सीता का हाल इस युग में
उस समय भी आग से गुजरना पड़ा था उसको
ओर आज भी हर कदम आग में चलना है उसको
आज आंसू आ जाते है देख कर हाल 'राणा'
विधवा की पेंशन के लिए भी किसी को अपने
आंचल से बंधे १०० का नोट निकालते देखता हूँ
यूँ घूमते घूमते इस शहर में आ गया हु
जिन्दा लाशों की किसी सुनसान बस्ती में आ गया हु
शब्दों की पीड़ा कहे कोमल हृदय का भाव।
जवाब देंहटाएंकविता ने छोड़ी यहाँ मुझपर बहुत प्रभाव।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आज आंसू आ जाते है देख कर हाल 'राणा'
जवाब देंहटाएंविधवा की पेंशन के लिए भी किसी को अपने
आंचल से बंधे १०० का नोट निकालते देखता हूँ
-भावुक कर देती हैं यह पंक्तियाँ-व्यवस्था पर गुस्सा आता है.
हर हर्फ कुछ कहता है,
जवाब देंहटाएंभाव का दरिया बहता है.
सच ही तो है
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