29 अगस्त 2009

निदा फाज़ली

उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तनहा होगा
इतना सच बोल कि होटों का तबस्सुम न बुझे
रोशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिसको पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा
एक महफ़िल में कई महफिलें होती हैं शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
मेरे बारे में कोई राय तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड़ के देखा होगा

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