18 अगस्त 2009

तन्हाई

आँखों से कैसे कह दू कि
हर बात अधूरी सी लगती है
दिल से जुबाँ तक आने में
हर बात अधूरी सी लगती है
रिश्तों में खट्टी मीठी सी तकरार
भूली बातों सी लगती है
माँ की बूढी बाते भी
कई सालो का अनुभव लगती है
हर पल जहाँ हम मस्ती करते
वो बचपन की यादे लगती है
दिल को अंदर तक भेदती वो
बारिश की राते लगती है
जब भी अकेला होता मन तो
कितनी यादें भिगोने लगती है
रातें जागकर काटें भी तो
मेरी तनहाई कचोटने लगती है

2 टिप्‍पणियां:

  1. inhi adhoori baaton ko poora karne ka naam jeevan hai dost !
    aapki samvednaayen aapse bahut kuchh apeksha rakhti hai..

    umda kavita k liye badhaai !

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  2. संदीप जी, बस लिखते रहिये. जारी रहें.
    ---

    उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/

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