08 अक्तूबर 2009

निदा फाज़ली

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे
दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोडी बहुत तो जेहन में नाराज़गी रहे
गुजरो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमे खिले है फूल वो डाली हरी रहे
हर वक्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है
रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे

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